विरासत स्वराज यात्रा गरिसा विश्वविद्यालय में हर्षाबेन नदी जल संरचना बनाने हेतु जगह का चिन्हीकरण किया गया

विरासत स्वराज यात्रा हेवीस्विंग और गरिसा में पहुँची। जलपुरुष राजेन्द्र सिंह ने बताया कि हेबीस्विंग केन्या और सोमालिया का बॉर्डर है। यहाँ पर 20 हजार के लगभग लोग रहते है। सोमालियन का बड़ा सामुदाय रहता है। इस इलाके में गाँव के गाँव पूरे खाली हो रहे है। यहाँ अकाल के कारण दूर-दूर तक कुछ दिखाई नहीं देता, पूरा इलाका वीरान है।

यहाँ चारों ओर मरे हुए जानवर डले हुए है, जिसके कारण यहाँ बहुत बदबू है। यहाँ रूकना भी बहुत कठिन है। यहाँ सिर्फ एक बोरबेल है, जो सौर ऊर्जा से चलता है। वहाँ आस-पास पहले पानी होता होगा, इसलिए हजारों गाय इसके आस-पास मरी हुई डली थी और पानी बिल्कुल भी नहीं था।
यह देश बेपानी होकर उजड़ रहा है, बहुत लोग इस देश छोड़कर, दूसरें देशों में जा रहे है। जीवन, जीविका का संकट है और जमीर की तो कोई बात ही नहीं थी। यहाँ मारकाट, लड़ाई-झगड़े, भ्रष्ट्राचार का तो कोई अंत ही नहीं है। ऐसी दुर्दशा देखकर मन को बहुत दुख होता है, लेकिन कुछ अच्छे लोग है, जो इनकी सेवा में लगे हुए है जैसे- मुख्तार ऐंगले, हसन।
इसके बाद हर्षाबेन नदी पर जल संरचना की जगह का चिन्हींकरण किया। इसके उपरांत यात्रा हेबीस्विंग से 250 किलोमीटर दूर गरिसा विश्वविद्यालय के लिए रवाना हुई। रास्ते में पूरा र्निजन जंगल देखने को मिला, मीलों दूर तक पूरे गाँव के गाँव उजड़े हुए थे, एक भी व्यक्ति नजर नहीं आया। यहाँ भी गायें मरी हुई डली थी। इन उजड़े हुए घरों को देखकर बहुत दुख हुआ। यहाँ के सारे लोग अलग-अलग जगहों पर चले गए है, कुछ लोग यहाँ से 20 किलोमीटर दूर स्थित रिफ्जू कैंप में रहने लगे।
गरिसा विश्वविद्यालय तक आने में दो कस्वा रूपी शहर मिले-मग्गामदादित और लोकोबोला यह दोनों भी उजड़ गए है।  यहाँ के जानवरों की भी बहुत बुरी हालत है। यहाँ चारें तरफ उजाड़, वीरान दिखता है। इस विश्वविद्यालय में जलपुरुष राजेन्द्र सिंह की टीम ने यहाँ के वाइस चांसलर, प्रोफेसर, यहाँ के डीन, रजिस्टार सभी के साथ बैठक की। विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ने राजेन्द्र सिंह से पूछा कि, हम कैसे लोगों को इस आपदा से बचा सकते है? इस गंभीर संकट से कैसे निपटा जा सकता है। तब जलपुरुष राजेन्द्र सिंह ने अपने राजस्थान के अनुभवों को प्रस्तुती के माध्यम से बताया। सभी ने इसे व्यवहारिक काम माना।
विश्वविद्यालय के सभी लोग बहुत चिंतित दिख रहे थे। इन लोगों ने बताया कि, इस उजाड़ को देखने के लिए सरकार या अंतरराष्ट्रीय संगठन आगे नहीं आ रहे है। क्योंकि इस विद्यालय में 2015 में 147 विद्यार्थियों व शिक्षकों पर हमला करके, जान से मार दिया गया था। इसलिए विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों व शिक्षकों की संख्या नाम मात्र के लिए रह गई है।
गरिसा विश्वविद्यालय में प्रो. अहमद उस्मान बाक्वा तथा नोर्वे से आये महमूद अहमद और स्वीडन से ऋषभ खन्ना, हसन, राष्ट्रपति के सलाहकार मुख्तार ओंगले जलपुरुष राजेन्द्र जी के साथ थे। पूरी टीम ने विश्वविद्यालय के पूरे स्टाप के साथ लम्बी वार्ता की थी।
इथोपिया, सोमालिया, केन्या के देशों के लोग इस इलाके में रहते, वह सभी पशुपालक है।  ये इलाका हमारे भारत में जो पुराना रेगिस्तानी मरुस्थल था, उससे भी ज्यादा भयानक हालत में है। अपने यहाँ तो खाने के लिए काफी कुछ था, लेकिन यहाँ के सभी जानवरों की हालत बहुत गम्भीर है। यदि यहाँ अगले 10 से 15 दिन में बरसात नहीं होती है तो, यहाँ के सारे जानवर मर जायेंगे। इतनी बुरे हालात पर बहुत गम्भीर चर्चा हुई। मुख्तार ओंगले ने विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरों से कहा कि, हम कैसे सरकार को जलवायु परिवर्तन से बचने के लिए काम करवाया जाए? यहाँ की पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन के कारण उजड़ रही है। इसे बचाना बहुत जरूरी है। 
जलपुरुष राजेन्द्र सिंह ने कहा कि, विरासत स्वराज यात्रा का जो लक्ष्य था, उसकी दृष्टि से हम काफी सफल हुए है। यहाँ नदी के पानी का जो विवाद था, उसको यहाँ के मुखिया, चीफ, सरकारी अधिकारी, सामुदाय के कुछ मुख्य लोगों के साथ बैठकर साईट को तय किया गया। आशा है कि, जल्दी इस पर काम शुरू होगा। इससे काफी पानी मिल जायेगा। एक आशा की किरण दिखती है।

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