वेदांता लिमिटेड के चेयरपर्सन श्री अनिल अग्रवाल की एक पोस्ट

पिछले तीन वर्षों में भारत में धातुओं की मांग में वृद्धि दरअसल खनिज उत्पादन की वृद्धि से कहीं अधिक रही है। तांबे की खपत में 22 फीसदी की वृद्धि हुई, जबकि कॉपर कन्सेंट्रेट का उत्पादन केवल 4 प्रतिशत बढ़ा। एल्युमीनियम के लिए खपत में 13 फीसदी की वृद्धि हुई लेकिन कच्चे माल बॉक्साइट में केवल 6 फीसदी की वृद्धि हुई। लौह मिश्र धातुओं के लिए खपत में 30 फीसदी की वृद्धि हुई है जबकि क्रोमाइट और संबंधित खनिजों का उत्पादन केवल 6 फीसदी ही बढ़ा है। यहां तक कि स्टील की 13 फीसदी की मांग भी लौह अयस्क की 11 फीसदी की वृद्धि से अधिक है।

इसका मतलब यह है कि भारत में इन खनिजों और धातुओं का आयात लगातार बढ़ रहा है। यहां तक कि तेल के लिए भी पिछले तीन वर्षों में औसत मांग 6 प्रतिशत की दर से बढ़ी है जबकि घरेलू उत्पादन वृद्धि में 1 प्रतिशत की गिरावट आई है। हमारे वार्षिक आयात बिल का 50 प्रतिशत, यानी 760 बिलियन डॉलर में से लगभग 380 बिलियन डॉलर प्राकृतिक संसाधनों के कारण है। अर्थव्यवस्था जिस तेजी से बढ़ रही है, धातुओं और तेल की मांग और भी तेजी से बढ़ेगी।

भारत में तेल, खास तौर पर स्वीट क्रूड समेत सभी खनिजों में अपार भूगर्भीय क्षमता है। हमें इसका लाभ उठाना चाहिए। अन्वेषण में निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। सेल्फ सर्टिफिकेशन के आधार पर मंजूरी दी जानी चाहिए। हमें निजी क्षेत्र की भागीदारी के साथ हिंदुस्तान कॉपर, भारत गोल्ड माइन, हट्टी गोल्ड माइंस जैसी परिसंपत्तियों के ब्राउनफील्ड विस्तार पर विचार करना चाहिए। इससे न केवल आयात में कमी आएगी बल्कि करोड़ों नौकरियां और अवसर पैदा होंगे, खास तौर पर कम कौशल वाले लोगों के लिए, जिससे गरीबी पूरी तरह खत्म हो जाएगी। हर देश जिसने प्रगति की है, उसने जमीन के नीचे के संसाधनों का बेहतर तरीके से उपयोग किया है। हमें भी ऐसा करना चाहिए।
#DeshKiZarooratonKeLiye

Popular posts from this blog

पीएनबी मेटलाइफ सेंचुरी प्लान - आजीवन आय और पीढ़ियों के लिए सुरक्षा

डांडिया पर थिरके जयपुरवासी

आईआईएम संबलपुर में मर्मज्ञ 9.0 का आयोजन